"आयस्ती प्राप्य पूर्व च त प्रसनचित नृपम् । र मृगयानिगत । द्गज्जरापाहु- ददर्श सा- ॥ तमुद्यानगता सी पे वस्सेश सस्युदीरितम् । इत्यादि (मदनमका लयफ ) अर्थात् पहिले भावस्ती में पहुँचकर, उद्यान में ठहर कर, उसने सखी के बताए हुए वत्सगम प्रसेनजित् फा शिकार के लिये जाते समय, दूरमे देखा । यह वृद्धावस्था के कारण पांडु वर्ण हो रहे थे। इघर योद्धा ने लिया है कि " गौतम नेप्पपना नया चातुर्मास्य कौशांयी में, उदयन के राज्य काल में, व्यतीत किया, और ४५ चातुर्मास्य फरफे उनका निर्वाण हुआ। ऐमा मी फहा जाता है कि- ____ अजातशत्रु फ राज्याभिषेक से , नवें या माठ वर्प में गोसम का निर्माण हुआ । इससे प्रतीत होता है कि गौतम के ३५ या ३६ घ चातर्मास्य के समय प्रेमातश सिंहासन पर बैठा। सब तक वह थियसार का प्रसि- निधि या युवराम-मात्र था। क्योंकि प्रभास ने अपने पिता को अलग फरफे, प्रतिनिधि रूप से, यह दिना तक राज्यकार्य किया था, मोर इसी फारस गौसम ने राजगृह का माना यन्ट कर दिया या। ३५ व चातुर्मास्य में ९ चातुर्मास्यों का समय घटा देने से निश्चय होता है कि प्रजात के सिंहासन पर बैठने के २६ वर्ष पहिले उदयन ने पञ्चायती और पासवदत्ता मे विषाह पर लिपा था, और यह एक स्मसम्र शक्तिशाली नग्ग था। इन पाता फेसम्बने से यही ठीफ जंचता है कि पद्मावती अजातशत्र फी ही पड़ी पहन थी, क्याफि पचायती को अजातशत्र से बड़ी मानन के लिये यह विवरण पेष्ट है। दर्शफ का उल्लेस्य पुराणों में मिलता है,
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