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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/२८

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कथा प्रसङ्ग ।
 

सम्बन्धिनी थी । वैशाली की वृज जाति (लिच्छवी) अपने गोत्र के महावीर स्वामी का धर्म विशेष रूप से मानती थी। और, छलना का झुकाव अपने कुल धर्म की ओर अधिक था । इधर देवदत्त, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने गौतमवुद्ध के मार डालने का एक भारी पड्यन्त्र रचा था, और किशोर अजात को अपने प्रभाव में लाकर राजशक्ति से भी उसमें सहायता लेना चाहता था-चाहता था कि गौतम से वह अहिंसा की ऐसी व्याख्या संघ में प्रचारित करावे जो कि जैन धर्म से मिलती हो। और, उसके इस उद्देश्य में राजमाता को सहानुभूति का भी मिलना स्वाभाविक ही था।

यौद्धमत में बुद्ध ने कत दृष्ट और उद्दिष्ट इन्हीं तीन प्रकार की हिंसाओं का निषेध किया था। यदि भिक्षा में मास मिले तो वर्जित नहीं था। फिन्सु देववत्त यह चाहतामा कि 'संघ में यह नियम हो जाय कि कोई भिक्षु मांस खाए ही नहीं ।" गौतम ने ऐसी आज्ञा नहीं प्रचारित की। देवदत्त को धर्म के बहाने छलना की सहानु- भूति मिली और घड़ी रानीं तथा विम्वसार के साथ जो युद्ध के भक्त थे शत्रुता की जाने लगी।

इसी गृहकलह को देख कर विम्बसार ने स्वयं सिंहासन त्याग दिया होगा। और राजशक्ति के प्रलोभन मे अजात को अपने पिता पर सन्देह रखने कारण हुआ होगा, और विशेष नियन्त्रण- की भी आवश्यकता रही होगी। देवदत्त और अजात के कारण गौतम को कष्ट पहुँचाने का निष्फल प्रयास था। सम्भवत इसी से अजात क्रूरताओं का बौद्धसाहित्य में बड़ा अतिरजित वर्णन मिलता है।

कोशलनरेश प्रसेनजित्

के--शाक्य-दासी कुमारी के गर्भ से उत्पन्न-कुमारी का नाम विरुद्धक था। विरुद्धक फी माता का नाम जावों को वासमा खत्तिया