पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/२७

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कथा प्रसा। दिये हुए फाशी प्रान्त को भाय-फर वासों को ही मिले । निदान, इस पूरन फो लेकर दो युर हुए। दूसरे युद्ध में अजातशत्रु पन्ती हुआ। सम्भवतः इस बार उदयन ने भी कोशल को सहायता दी थी। फिर मी निकट सम्बन्धी नानफर समझौता होना भवश्यम्भावी था इसलिये प्रसेनजित ने मैत्री चिरस्थायी करने के लिये और अपनी बात मी रस्मने के लिये, अजातशत्र से अपनी दुहिता वाजिराकुमारी का व्याह कर दिया। मजासशत्र के हाथ से उसके पिता पिम्पसार की हत्या होने का उल्लेख भी मिलता है। 'थुस-जावफ-कथा' अमातशत्रु का अपने पिता से राम्य छीन लेने के सम्यन्ध में भविष्यवाणी के रूप से फही गई है। परन्तु शुरुषोप ने विस्वमार, र बहुत दिन तक अधिकारच्युत होकर पन्दी की भषम्पा में रहना लिम्बा है। और, जय अमावरात्र को पुन हुमा तप उसे 'पेतृक स्नेह का 'भूस्य समझ में आया। उस समय यह स्थय पिता को कारागार से मुक्त करने के लिये गया, फिन्तु उस समय यहाँ महाराज लिम्बसार की अन्तिम अयस्था थी। इस तरह से मो पितृहत्या फा कला उस पर पारोपित किया जाता है। फिन्सु कई विद्वानों के मस मे इसमें सन्देह है कि अजात ने पास्तर में पिता को बन्दी बनाया, या मार डाला था। उस फाल की पटनामों को देस्यने स प्रतीव होता है कि पिम्पसार पर गौतम दम का अधिक प्रमाव पड़ा था। पसन अपने पुत्र का त म्यमाव देख फर आकि गोतम के विरोधी सेवदत्त के प्रमाव में विशेष -रहता था, वय सिंहासन छोड़ दिया होगा। ., इमका कारण भी है। अजातशत्रु की माना छलना, वैशाली के राजवश की थी, जो जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी की निकट