पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
अजातशत्रु ।
 

सुकोमल मत्तिका है से भरी सुधरी हुई क्यारी ।
न उसमें ककड़ी काँटे सरलता से, सिंची सारी॥
लगा दो सो कि चाहो, है तुम्हारे हाय में सब कुछ।
कँटीली झाडियों चाहे सुमन वाली लता प्यारी ॥
हृदय इन होनहारों का उसी क्यारी सदृश होगा ।
सुशिक्षा यौष जो दोगे तभी इसमें सफल होगा ॥

कुणीक--"फिर तुमने मेरी आज्ञा क्यों भङ्ग होने दी ? दूसरे अनुचर इसी प्रकार मेरी आज्ञा का तिरस्कार करन साहम नहीं करेंगे ?"

छलना--"यह कैसी बात ?"

कुणीक--"मेरे चित्रक के लिये जो मृग आता था उसे आने के लिये लुब्धक रोक दिया गया। आज यह कैसे खेलेगा?

छलना-"पद्मा ! क्या तू इसकी मगल फामना करती इसे अहिंसा सिखाती है, जो भिक्षुकों की भोड़ी भीख है। राजा होगा, जिसे शासन करना होगा, वह भिखमगों का नहीं पड़ सकता। राजा का परम धर्म याय है, वह ठग आधार पर है। क्या तुझे नहीं मालूम कि यह भी हि मूलक है ?"

पद्मा--"माँ ! क्षमा हो । मेरी समझ में नो मनुष्य हाना, होने से अच्छा है।"