पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/४१

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अङ्क पहीला
 

छलना--"तू कुटिलता की मूर्ति है । कुणीक को अयोग्यशामक बना कर उमका राग्य आत्मसात करने के लिये कौशास्वी से आई ह है। कौशलमयी शत्रुता किया चाहती है।"

पद्मा०—"माँ । बहुत हुआ, अन्यथा तिरस्कार न करो मैं आजही चली जाऊँगी।"

(वासबी का प्रवेश)
 

वासवी--"वस्म कुणीक कई दिनों मे तुमको देना नहीं। मेरे मन्दिर में इधर क्यों नहीं प्राण ? फुशल तो है? "

(कुणीक के सर पर हाथ फेरती है)
 

कुणीक--"नहीं माँ, मैं तुम्हारे यहाँ न आऊँगा अब तफ पद्मा घर न जायगी।"

वासवी-"क्यों । पद्मा तो तुम्हारी ही बहिन है। उसने क्या अपराध किया है ? यह सो वड़ी सीधी लड़की है।"

छलना (क्रोध से) "वह सीधी है और तुम सीधी हो । आज से कमी कुणीक तुम्हारे पास न जाने पायेगा और तुम भी पटि मलाई चाहो तो प्रलोभन न देना।"

वासवी--"छलना ! बहिन !" यह क्या कह रही हो । मेरा यत्म कुपीक । प्यारा कुणीक । हा भगवन् । मैं उसे देखने न पाऊँगी। मेरा क्या अपराष—"

कुणीक--"यह पद्मा, बार बार मुझे अपदम्य किया चाहती है, और जिस बातको मैं कहता हूँ उमेही रोक देती है । क्या मैं उसका दास हूँ।"