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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/४७

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मा पहिमान पासवी-" करुणामूर्ति ! हिमा से रँगी हुई सर्वसहा वसुन्धरा भापके चरणों के स्पर्श मे अवश्यही स्वच्छ हो मायगी । उसकी फलक फालिमा धुल आयगी । धन्य हैं।' गौतम-"शुद्ध युषि तो सदैव निलिम रहती है। केवल ! साक्षी रूप से यह सय दृश्य देखती है। सय भो, इन सामारिक मगहों में उसका उद्देश होता है कि न्याय का पक्ष विजयी हो वह स्मत उम अभियोग में लिप्त न हो, फिन्सु भन्याय को प्रपल देख कर पामीन अवश्य होगी । उमी उदासीनता का प्रतिधान । होता है, वही न्याय का ममर्थन है । तटस्थ की यही शुभेच्छा सस्य | साप्ररित होफर समस्त पापारों की नींव विश्व में म्यापन | करती है। यदि वह ऐमा न करे तो अप्रत्यक्ष रूप से अन्याय का समर्थन हो जाता है-राजन्, हम मिरक्तों को भी इमीलिये विडम्बना पूर्ण राजाशन की आवश्यकता हो जाती है। म. पिम्बमार-"भगवान फी शान्ति पाणी की धाग प्रलय फी नरकाग्नि को भी घुमा देगी। मैं मार्थ हुमा- .. मलना-~-(नीचा मर फर के) “यदि आमा होवो मैं माऊँ ?" । गौतम-"गनी ! तुम्हारे पति और देश के मम्राट फे रहम हुए मुझे कोई अधिकार नहीं है कि तुम्हें भामा हूँ। तुम इन्हीं मे माझा ले सकती हो । म० पिम्पमार-(पूर फर देखते हुए )"हाँ, घलन ' तुम जा १