पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/४६

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अमातशत्र। - फचुक- प्रवश करक) "महाराज ' जय हा। भावान तथागत गौतम पाना चाहते हैं।" म. थिम्पसार-"सादर लिया ला- (कंचुकी का प्रधान ) "छलना दय का आवेग कम करो, महाममण के सामने दुर्घलता न प्रकट होने पाये- (प्रजातका साथ लिये दुप गौतम का प्रवेश ) (मम ममम्कार करते हैं) । गौतम-"कल्याण हो । शान्ति मिले in - म० यिम्यसार-"भगवन , आपने पधार कर मुझे अनुगृहीत किया । 'गौतम-"राजम । कोई किमी को भनुगृहीस नहीं करता है। विश्वभर में यदि कुछ कर सकती है तो वह फरणा है, जो प्राणी मात्र में समष्टि रखती है।- गोधूली क' राग पटल में स्नेहाम्पल फहराती है । स्निग्ध पा के शुभगगन में हास विनास दिखाती है। मुग्ध मपुर पालक में मुख पर पन्द्रकान्ति यरसाती है। निर्निमप तारामों से यह पोस द भर लाती है ॥ हिंसक बीर्या को भी यह ही भ्रम उमका दिखलाती है। 'कर हृदय पस्थान को भी ना कभी न कर्मी गलाती है। नि तुर भादि सष्टि पशु मों की विवित हुई इस करुणा से । मानस का मह व गती पर फैमा अरुणा करुणा स ||