पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/५३

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मह पहिला। म० विम्यमार-"योग्यता होनी चाहिग महाराज । यह पड़ा गुरुवर कार्य है । नवीन रक राज्यभी का सदैव तलवार के दर्पण में देखा थाहता है। गौतम-(हँस कर)"ठीफ है । किन्तु, फाम करने के पहिले सो फिमी ने भी आज सक विश्वस्त प्रमाण नहीं दिया कि यह कार्य के योग्य है । यह वहाना तुम्हाग राज्याभिकार की आकाशा प्रकट कर रहा है । रामन ' समझ लो, इस गृह विवाद और भान्तरिफ झगहों मे विश्राम लो।" पामा--"मगवन ! मैं आपकी आज्ञा का अनुमोदन करती है। हमें लोगों को सो एक छोटा सा उपवन पर्याप्त है। मैं, नाय के भी माथ रह कर मेवा कर सर्फेगी।" ____म० बिम्बसार-"तप जैसी भाप की प्राशा । (फरचुकी से) राजपरिपद, सभागृह म एकत्र हो । कम्युफी ! शीघ्रता कगे।" (कमुकी का प्रस्थान) पट परिवर्सन ।