पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/५८

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अजातश। धामवी-"वह क्या नाथ ?" बिम्बमार-"समारी को त्याग, तितिक्षा या विराग होन के लिये यह पहिला और सहज साधन है। क्योंकि मनुष्य अपनी ही आत्मा का मोग उमे भी समझता है । पुत्र को समस्त अधिकार देने में और वीतराग होने से, कुछ मी असतोप नहीं रह जाता। यह घड़े यहे लोभी भी कर सकते हैं।। - ___ वासवी-"मुझे यह जान कर प्रसन्नता हुई कि आप को अधिकार से वचित होने का दुःख नहीं।' विम्यमार-“दुख तो नहीं देवी । फिर भी इस कुणीफ के व्यवहार से अपने अधिकार का ध्यान हो जाता है। तुम्हें विश्वास हो या न हो, किन्तु कभी कभी याचकों का लौट जाना मेरी येन्ना का कारण होता है।" वासवी-"तो नाय ! जो प्रापफा है वही म राज्य का है, 'उसी का अधिकारी कुणीक है, और जो कुछ मुझे मेरे पीहर से मिला है उसे अब तक मैं न छोई सय तक तो मेरा ही है। विम्येसार-"इमक क्या अर्थ है " पासपी-"काशी फा राग्य मुझे मेरे पिता ने माँचल में Amहै, उसकी प्राय भाप हाय में पानी पाहिए और मगध 44 फी एफ कौड़ी भी आप न छूएँ। नाथ । मैं ऐमा द्वेप कहती हूँ किन्तु फेवल पापका अपमान बचाने के लिये विम्बसार-"मुझे फिर उन्हीं मगहा म पड़ना होगा, देवी जिन्हें अभी छोर पाया है।"