पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६२

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अमामशत्रु । पासपी-"नाथ ' मैं श्रापम छिपानी थी, फिर भी कहना ही पड़ा फि हम लोग वानप्रस्थ प्रामम में भी स्वतन्त्र नहीं रख गये हैं ? यिम्यमार-(निश्वाम लेफर )"ऐसा '-तो कुछ हो--- (गाने हुए मिमुर्मा का प्रवेश) न धग कह कर इसका थाना । ___यह दो दिन का है सपना ॥ न घगे " बमय का घरसाती नाला, मरा पहाही मरना । यहा पहायो नहीं और को जिस म परे सपना ॥ न घगे ॥ दुखिगों का कुछ औंम पाछ ला, पडे न पाहे भरना स्लाम धारभर हो उदार, यस, एक उसी को जपना ॥ न घगे ।। निम्बसार-“देवी, इन्ह कुछ दो- वासयी-"और तो कुछ नहीं है- (कारण उतार कर देती है) प्रमु! इन सोने और जगहिरों ही का आँखों पर पड़ा रा रहता है जिसमे मनुष्य अपना अस्थि चर्म का शरीर तफ नहीं देखने पाता- - (भिन्नारो गाते है) पटाक्षेप। .