पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६१

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प्रद पहिला। - - हैं इस नहीं बम्प सकते। प्रस्तु अब मुझे क्या जाना है क्योंकि यह जीवन अब आपही की मेवा के लिये उत्मर्ग है।" यामवी-"जीवफ, तुम्हारा कऱ्याण हो, तुम्हारी सदयुद्धि तुम्हारी चिरमगिनी रहे। महाराज को अम म्यन्त्र पृमि की आवश्यकता है। अत' काशी प्रान्म का गजम्ब जो हमारा प्राप्य है उमे लाने का उद्योग करना होगा। मगध माम्राज्य मे हम लाग फिसी प्रकार का सम्बन्ध न ग्स्यगे।' ___ जीवक-'देवी । इसके पहिले कि हम और कोई कार्य करें हमाग फौशाम्यो जाना एक बार आवश्यक है। बिम्बमार-"नहीं मोवक । मुम किसी की महायता फी भावश्यता नहीं, अन्य बह राष्ट्रीय मादा मुझे रुपता नहीं । उमको पाह भी नहीं। पासवी-"मय भी प्रापको भिक्षावृत्ति नहीं करनी होगी। अभी हम जोगों म वह त्याग मानापमान रहित पूर्य स्थिति नहीं भा मकेगी। फिर, जो शत्रु मे मा अधिक पृणित म्पहार करना पाहसा हो, उसको भिक्षा वृत्ति पर अबलम्बन करने को लय नहीं फह मफता " ____ लोवक-"काशल तो मुमन जा चुके हैं और फौशाम्बी में भी यह समाचार पहुँचना प्रापश्यक है। इसी लिप मैं करता था भौर काई वात नहीं। काशी के दानायक म भी मिल कर जाऊँगा, उमको फेमी स्थिति है इमे भी दम्ब लगा।' विम्पसार-जैसी सुम लोगों की गला ।