पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/७२

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अजातशत्रु। चम्चा अनिल, अनल, जल, थल सर्य, चञ्चल से पारा है॥ जगत प्रगति से अपने पश्चल मन की चञ्चल लीला है । प्रति पण प्राति घचला बेसी यह परिवर्तनशाला है । श्रा परमाणु दुःख सुख चम्चल, सगिक समी सुख साधन है। दृश्य सकल नश्वर परिणामी, फिमको दुख क्सिको धन है ।। क्षणिक सुखों का स्थायी (फहना.. -इस मूज' यह भूल महा । चञ्चल मानव पयों भूला तू, - ___Fस साठी में सार कहाँ । जोयफ-"प्रमु ! कृतार्थ हुमा । दर्शन से नेत्र धन्य हुप In _ ____ गीतम-"कल्याण हो । मत्य की रक्षा करने म, वही सुरक्षिप्त फर लेता है। जोषक ! मिर्भय होकर पवित्र कत्तध्य करो।" (पिर ममता का प्रवेश ) है, ( गौतम गात हैं) यसन्त-"महा वैद्यराज ' नमस्कार । वम एफ रेचक और थोपा मा चम्निकम्म दमके पाट गर्मी ठती