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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/८१

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भर पहिला। "अग 1 वर ममात का मनोहर सप्त विश्वभर की मदिरा होकर मेरे सन्माद को सहकारिणो कोमल फल्पनाओं का भण्डार हो गया। मल्लिका! तुझे मैन अपने यौवन के पहिले प्रीष्म की अर्ब रात्रि में मालोकपूर्ण नवनलोक से सरल दीरा के फूज (फे रूप) में भाते देखा । विश्व के प्रसस्य कोमल फएठ की रमोनी ताने मेरा अभिनन्दन करने, सुमे सम्हाल कर उबारने के लिये नक्षलोग फो गई थी। गिशिर फणा से सिक्स पवन सेरे उतरने की सौदी पना था, तू धीरे धीरे उमी के सहारे चतरी उपा ने वेरा स्वागत किया-चाटुकार मलयानिश तेरे परिमला फी इछा से परिचारक पन गया, और परजोरी महिमा क एक कोमल गुन्त फामासन ऐकर तेरी मेवा करन लगा। उसने वेशते वेषसे तुझे उस पासन से भी उठाया और गिराया। तू घरणों पर माही गई। जटिल जगत की फठिन पृथ्वी पर सू फुटिल गृहस्थी फे घालबाल में पामर्यपूर्ण सौन्दर्य रोफर सी हो गई। यह फैना इन्द्रमाल था-प्रभाव का यह मनोहर स्वप्न या- सेनापति मन्युश एक हदयहीन फरसैनिक ने तुझे अपनी अप्णोरा का फूल पनाया। और हम तुझे अपन घेरे में रखने के लिये कंटीली माली पन कर पड़े ही रहे। फोराल के पाज मीहम फसफ स्वरूप है • • - - (कोराज की रानी का प्रवेश) रानी-"छि रामकुमार । इमी तुर्यन रदय मे तुम समार म फुछ कर सकोगे। स्त्रिया की मौ रोदनशीला प्रति लेकर तुम -कोरालके सपाट यनोगे । ४१