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अमातशत्र नाम भी नहीं है। विदेशी वर्वर शताब्दियों सक उधर देखने का भीसाहस न करेंगे। - .. प्रसेनः-'धन्य है विजयीपीर । कोशल तुम्हारे ऊपर गर्व... करता है और आशीर्वादपूर्ण अभिनन्दन करता है। लो यह', विजय का स्मरण चिन्ह 11 (हार पहिनाता है)। सय-"जय सेनापति घन्धुल की जय । । , प्रसेन-(ोंफते टुण्) "है !--मायो विमाम फरो।" .. (सन्युप्त कासा है,), (हश्य आठवी स्थान--प्रकोष्ठ । - । मुमार विष्टक पफासी पैठे ।) _ विकसक-(आप ही थाप) "घोर अपमान । अनादर की । पराकाष्ठा और तिरस्कार का भैरवजाद ॥' यह क्या महनीय है ? ' अधिकारपूर्ण कोशल देश की सीमा कमी की मेरी माँखों से दूर हो । जाती । किन्तु, मेरे जीवन का विकाशसून एफ पड़े कोमल फुसुम के साथ बंध गया है। पय नीरव भमिलापाचों का नीर हो रहा है।