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पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/९८

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अजातशत्रु । सम प्रस्त हो गये । फिी नाथ ने ललकार कहा कि-धीर-माहगए जायो अस्त्र-धैय से अपनी चिकित्सा कराग्री, यीच में जो अपन्ने कमरयन्ट खोलेगा, उमी की यह अवस्था होगी। मप्लमहिलामा की ईपी-पात्र होकर और उस सगेवर का जल स्वेच्छा मे पान कर मैं कोशल लौट आई। ___ महामाया-"माधर्य ! ऐमी वाण-विद्या नो अब नहीं दखन में आती। ऐमी धीरता है तो विश्वास करने की बात ही है, फिर भी मल्लिका ' राम्-शक्ति का प्रलोभन, उसका आदर, अच्छा नहीं है, विप का लर, है, गन्र्धवनगर का प्रकाश है। फर क्या परिणाम होगा-निश्चित नहीं है। और इमी यीरता स महाराज को माफ होगया है । यद्यपि मैं इम ममय निराहत हूँ फिर भी मुझसे उनकी यातें छिपी नहीं हैं। मल्लिके ! मैं तुम्ह बहुत प्यार करती हूँ । इस लिये कहती हूं-- मल्लिका-" क्या कहा चाहती हो रानी, महामाया-"यही कि गुप्त प्रांसापत्र शैलेन्द्र डों के नाम जा चुका है, कि यदि सुम बन्धुल का थघ कर सकोगे तो तुम्हारे पिछले सय अपराध क्षमा कर दिये जायेंगे, और तुम उनके स्थान पर मेनापति बनाये जानोग" ___ मल्लिका-"किन्तु शैलेन्द्र एक पीर पुरुष है, यह गुम हत्या क्यों करेगा । यदि वह प्रकट रूप से यु फरेगा मो मुमे निश्चय है कि केशल का सेनापति उमे अवश्य मन्त्री पनागेगा।'