सर- . महिम-"किन्नु परना नहीं है। वे तलवार की धार है अग्नि, की मयानक माला है। वीरता के घरेस्य दूत हैं। मुझे विश्वास है कि सन्मुस्त्र युद्ध में शक भी उन प्रथया आघातां को रोकने में असमर्थ है। रानी : निस दिन मैंने कहा था कि 'मैं पापा के श्रम- 'वसर का मस पीकर म्वस्थ होना चाहती हैं, पर यह सरोवर पाय सौ प्रधान ममें से सदैव रक्षित रहता है । इमरी जाति का कोई भी समें अझ नहीं पीने पावा' समी दिन स्वामी ने कहा था कि भी वो तुम्हें मह मल अच्छी घरह पिला सकूगा ।" महामामा-"फिर स्या हुश्रा- मक्षिका-"रय पर अफेसे मुझे लेकर वहीं पजे। उस दिन मेरा परम सौभाग्य था, सारी मसजाति की खियाँ मुमपर पा करती माँ । जब मैं अकेली रथ पर बैठी थी, और मेरे वीर स्वामी ने उन पाँच मो मतों स अपने युर पारम्म किया ' और मुझे भामा की कि " तुम निर्मय होफर माओ सगेवर म म्नान कोनपिनो) ____ महामाया--'म युद्ध में क्या हुआ महिका-"वैसी घातविया पाण्यों की कहानी में मैंने मुनी थी । लेखा, मयके पनुप कठे थे और कमरवन के बन्धन से ही थे चल सकने य । अब ममीप पाकर म्पायुर में माहान करने जग नव स्वामी ने कहा- पहले अपने शरीर की अवस्था सो देखा, मैं अर्द्धमतक पायलों पर अम नहीं चलाता। गनी, उमफे सेनानी ने सत्र सपना कारवनलोली को निर्जीव होकर गिरने सगा। यह देखें
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