पृष्ठ:अणिमा.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
 
 

प्रत्याशी, फल के कामी, दुरित-दैन्य दल-मल
चाहते दैव से श्री शोभा, विभूति, सम्वल।
ऐसे सांसारिक जनों के लिये ज्यों जीवन
आये रामानुज; गृही चरित का आवर्तन
श्री-सुख से भरकर किया भिन्न दर्शन देकर
रक्खा संश्लेष विशिष्ट नाम रखकर सुन्दर।

वैदक ज्ञान, तथागत का निर्वाण वही,
जो धरा वही विचार धारा की रही मही,
देश काल औ' पात्र के भेद से भिन्न वेद
प्रेम जो, हुआ ज्यों वही बदलकर प्रियच्छेद।
बौद्धों के ही प्रचार का फल मिस्र में फलित—
मूसा की प्रतिभा में बदला वह धर्म कलित,
फिर ईसा में पाया कुछ परिवर्तन लेकर,
फिर हुआ महम्मद में अवतरित ताल देकर
एक ही भिन्न राग का प्रवल,
फैला कलकल
ज्यो जलोच्छवास प्लावन का दसों दिशाएँ भर