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भ्रातृभाव का उल्लास प्रखर।
टूटा भारत का वर्ण-धर्म का बाँध प्रथम
इससे, जो सम थे हुए, हुए वे आज विषम
हारे दाहिर, हर गईं कुमारी कन्याएँ।
सूरज-परिमल, कुल की बे उत्कल धन्याएँ।
ले साथ महम्मद-बिन-क्रासिम अरब को चला,
है विदित चुकाया कन्याओं ने ज्यों बदला।

जब टूटा कान्यकुब्ज़ का वह साप्राज्य विपुल,
छोटे-छोटे राज्यों से हुआ विपत्संकुल
यह देश। उचर अदम्य होकर
बढ़ता ही चला राष्ट्र इस्लामी; वेग प्रखर
पृथ्वी सँभालने में असमर्थ हुई; निश्चय
दुर्दान्त क्षत्रियों से जो था प्राणों में भय
उन इतर प्रजाओं में, छाया उसका तुषार
जो फुल्ल-कमल-कुल पर आ पड़ा, सहस्त्रवार
नैसर्गिक अम्बर से ज्यों; ज्यों अधिकारि-भेद
चाहती बदलना प्रकृति यहाँ की, समुच्छेद