सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अणिमा.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७
 
 

जीवन के अनिवार
नियम से हैं उठे
आलोक छाया-प्रद,
जीवनद व्यवहार,
बहता चलता हुआ
कलकल ध्वनि कर,
अर्थ परमार्थ से
मिलते खिलते हुए
प्रतिवर्ष के-से फूल,
भिन्न-भिन्न रूप के
कृषि-शिल्प-व्यापार
रक्षण के स्तम्भ-से
खड़े, समारम्भ के
नगर-समाज,शास्त्र,
आज दिव्यास्त्र ज्यों
विश्वमानवता के,
राजनीति-धर्मनीति