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वर्जित पाशवता से,
सभी बदले हुए—
सभी भिन्न रूप के,
जर्जरता-स्तूप से
मन्त्र निकले हुए,
साम्य रखते हुए
विश्व के जीवन से;
बदले हुए कुम्हार,
नाई-धोबी-कहार,
ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य,
पासी-भङ्गी-चमार,
परिया और कोल-भील;
नहीं आज का यह हिन्दू,
आज का यह मुसलमान,
आज का ईसाई, सिक्ख,
आज का यह मनोभाव,
आज की यह रूपरेखा।