पृष्ठ:अणिमा.djvu/५४

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"माननीया श्रीमती विजयलक्ष्मी
पण्डित के प्रति" बंगला-चतुर्दशपदी
का अर्थ—

 

उस रोज़ तुमने मुझे बुलाया था मुझसे बात- चीत करने के लिए। मैंने सोचा था, किसी बहाने यह समस्या बचा जाऊँगा। मगर तरह-तरह की सोचकर अन्त में गया। तुम अपने रूप की तरङ्गों पर तैरती हुई जैसे आईं। लेकिन, तुम्हारी चितवन से, पीते वक्त जैसे पानी लगा। दिल धड़का। मेरे उपन्यास का एक चरित चुनकर तुमने पूछा, "जूतासाज़, पालिश कर सकते हो,"—एक पैर उठाकर जूता दिखाया। "कर सकता हूँ" ज्यों ही मैंने कहा कि तुमने जवाब दिया, "तब मैं तुम्हारी क़लमसाज़ी करूँगी।" साथ ही क़लमसाज़ी की भङ्गिमा दिखाई। खुशबू उड़ी—तुम्हारी आँखों और मुख पर गुलाब खिले।—निराला