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स्वामी प्रेमानन्दजी महाराज

आमों की मञ्जरी पर
उतर चुका है वसन्त,
मञ्जु-गुञ्ज भौंरों की
बौरों से आती हुई,
शीत-वायु ढो रही है
मन्द-गन्ध रह-रहकर।
नारियल फले हुए,
पुष्करिणी के किनारे
दोहरी कतारों में
श्रेणीबद्ध लगे हुए।
भरा हुआ है तालाव,
खेलती हैं मछलियाँ,
पानी की सितह पर
पूँछ पलटती हुई।
वहीं गन्धराज, बकुल,
बेला, जुही, हरसिंगार,