पृष्ठ:अणिमा.djvu/७७

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भक्ति से ओतप्रोत।
सभ्य जन आँसू बहाते हुए सुनते रहे।
स्वामीजी ध्यानमग्न,
स्वर के स्तर से चढ़कर
सहस्रार में गये।
लोकोत्तरानन्द तभी सबकी समझ में आया।
कथा परि समाप्त हुई।
गृहस्वामी भोजन का
आयोजन करने लगे।
पत्तलें पड़ीं नई।
आसन बिछाये गये,
जल-पात्र रक्खे गये।
घृतपक्व गन्ध से
महकने लगा गृह।
दूर आवास तक
हवा खबर भेजती है।
आमन्त्रित हैं सभी
राजकर्मचारिवर्ग।