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आवाहन होने पर
स्वामी उठकर चले।
क्षालित हुए उनके पद,
हाथ-मुँह धुलाकर
आसन दिखाया गया,
सब से अधिक मर्यादित।
उनके बैठने ही पर
बैठे आमन्त्रित जन,
एक ही पंक्ति में
ब्राह्मण-कायस्थ सब।
श्रेष्ठ राजकर्मचारी
जाति के कायस्थ थे।
स्वामी जी का पूर्वाश्रम कायस्थ कुल में था
जैसे विवेकानन्द जी का।
राजकर्मचारी को गर्व इससे हुआ।
खुलकर वह बोले भी—
"एक दिन ब्राह्मणों ने
हमें पतित किया था—