पृष्ठ:अणिमा.djvu/९९

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सादर ले चलने के लिए कृष्ण-मन्दिर में
उसी राह स्वामी को।
स्वामीजी ने कहा,
"साधारण के ही हैं हम
घूमकर जायँगे,
हमें यही खुशी है।"
अस्तु घूमकर गये।
दोनों और नौवतखाने।
चत्वर संगमारवर का।
दोनों ओर दिव्य मन्दिर।
सामने विशालकाय मन्दिर में कृष्णजी
स्वर्ण-भूषणों से सजे।
देखकर द्वारकाधोश कृष्ण याद आ गये।
पश्चिमीय जन वह मन्दिर के बाहर रहा।
स्वामीजी ने चलते समय कहा कि मैं वही हूँ
बाहर खड़ा है जो।"
लोटे जब स्वामीजी
साथ युवक हो गया मन्त्र-मुग्ध प्रेम से।
वासना से मुह फेरा, सदा को चला गया।

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