यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९६
किये नहीं जैसे, हम
साधु हैं।" शरीर से
ज्वाला सी निकली, ज्यों
ग्रास ही कर जाने को,
ब्रह्मदेव तड़ित से स्तम्भित से हो गये
देखा, श्रीकृष्णजी स्वामीजी में आ गये
ब्राह्मण को अपने नेत्रों पर हुआ अविश्वास।
रगड़कर फिर से देखा, कृष्णजी की नीलकान्ति
ज्योतिर्मयी घनीभूत स्वामीजी की देह में।
आनन्द के परमाणुओं का फ़व्वारा छुटा।
जितने जन थे जैसे उमड़े आनन्द हों।
देखा ब्रह्मदेव ने, ज्योति की सी रेखा से
स्वामीजी के साथ पश्चिमीय का शरीर बँधा
पागलसा हुआ वह भागा यह कहता हुआ।
"वाह वाह, ऐसा अच्छा आजतक नहीं देखा।"
कहता दौड़ता हुआ राजा के समीप गया
सुनते ही महाराज अभिभूत हो गये।
फिर भेजा ब्राह्मण को