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अतीत-स्मृति
 


यथा-ब्रह्मा, उद्गाता, अध्वयु, होता, ब्राह्मणशंसी, प्रस्तोता, मैत्रावरुण, प्रतिप्रस्थाता, पोता, प्रतिहर्ता, अच्छावाक, नेष्टा, आग्नीघ्र, सुब्रह्मण्य, प्रावस्तुत और उन्नेता।

आपस्तम्भ कहते हैं कि एक सदस्य भी होता है। इस प्रकार सोमयाग के १७ पुरोहित हुए। उनमें ४ प्रधान और शेष उन चारों के सहायक होते थे। होता, उद्गता, अध्वर्य्यु और ब्रह्मा-ये चार प्रधान होते थे।

अध्वर्य्यु के सहकारी प्रतिप्रस्थाता, नेष्टा और उन्नेता थे। होता के सहकारी प्रस्तोता, प्रतिहर्ता और सुब्रह्मण्य थे।

देवता की स्तुति और आह्वान करना होता का कार्य था। देवता के सन्तोषार्थ साम-गान करना उद्गाता का कार्य था। कार्य्य विशेष में अनुमति देना और सब के कामो को सँभालना तथा जप करना ब्रह्मा का कार्य्य था। यजमान इन सब ऋत्विकों को वरण करता था। ये लोग यजमान का हाथ पकड़ कर उसे यज्ञ-मण्डप में ले जाते और दीक्षित करते थे।

दीक्षा लेते समय यजमान पहले हजामत कराता था। पीछे स्नान करके और नये कपड़े पहन कर माङ्गल्य द्रव्य धारण करता था। ऋत्विक दर्भाञ्जलि अर्थात् कुश-गुच्छ लेकर यजमान के सर्वाङ्ग पर जल छीटते हुए, वेद-मन्त्र पढ़ते हुए, उसे यज्ञमण्डप के पूर्वद्वार से उसके भीतर ले जाते थे। भीतर जाते ही उसे यज्ञ दीक्षा देते थे। दीक्षा देने से मतलब एक छोटा सा होम कराने