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अतीत-स्मृति
 


आदि यूरप की भाषाओं में हो गया है। उनसे भारतीय सभ्यता का बहुत कुछ पता चलता है। प्रसिद्ध चीनी यात्रियों में फा-हियान सबसे पहले भारत में आया। उसी की यात्रा का संक्षिप्त हाल नीचे लिखा जाता है।

फा-हियान मध्य-चीन का निवासी था। ४०० ईसवी में वह अपने देश से भारत यात्रा के लिए निकला। इस यात्रा से उसका मतलब बौद्ध तीर्थों के दर्शन और बौद्ध धर्म की पुस्तको का संग्रह करना था। उन दिनों चीन से भारतवर्ष आने के दो रास्ते थे। एक रास्ता खुतन नगर के पश्चिम से होता हुआ भारतीय सीमा पर पहुँचता था। यह रास्ता कुछ चक्कर का था। इसीसे भारत और चीन के मध्य व्यापार होता था। दूसरा रास्ता जल द्वारा जावा और लङ्का के टापुओं से होकर था। यह रास्ता पहले से सीधा तो था, परन्तु पीत-समुद्र के तूफानों ने इस सुगम जलमार्ग को बड़ा भयानक बना रक्खा था। फा-हियान निडर मनुष्य था। वह भारत आया तो खुतन के रास्ते ही से, परन्तु स्वदेश को लौटा लङ्का और जावा के रास्ते।

फा-हियान के साथ और भी कितने ही मुसाफिर थे। खुतन पहुँचने के लिए लाप नामक जंगल से होकर जाना पड़ता था। इस जङ्गल में यात्रियों को बड़ा कष्ट सहना पड़ता। कोसों पानी न मिला। सूर्य्य की गरमी ने और भी गजब ढाया। प्यास के मारे यात्रियों का बुरा हाल हुआ। समय समय पर रास्ता भूल जाने के कारण भी उन पर बड़ी विपत्ति पड़ी। जब वे सब, किसी