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अतीत-स्मृति
 


चार वर्ण हैं जिनका उचारण एक दूसरे से बहुत कुछ मिलता है। अतएव सप्ताह का 'स' हफ़्ता के 'ह' में कभी नहीं बदल सकता। हफ़्ता शब्द सप्ताह का अपभ्रंश नहीं। जो कोई उसे सप्ताह का अपभ्रंश समझते हैं वे भूलते हैं।

ईसा के पांच सौ वर्ष बाद मुहम्मद का जन्म हुआ। उनके जन्म के कोई साढ़े सात सौ वर्ष वाद मुसल्मानों ने भारत में पदार्पण किया। यदि हिन्दू-शब्द मुसल्मानों का बनाया हुआ है तो उसकी उमर बारह सौ वर्ष से अधिक नहीं। परन्तु पाठकों को सुन कर आश्चर्य होगा कि हिन्दू-शब्द ईसा के जन्म से भी कई हज़ार वर्ष पहले का है। तो फिर क्या वह वेदों में है! नहीं। किसी शास्त्र में है? नहीं। जैनों या बौद्धों के पुराने ग्रंथों में है। नहीं। फिर है कहां? है वह अग्निपूजक पारसियों के धर्म्मग्रन्थ ज़ेन्दावस्ता मे। जिन पारसियों को आज कल हिन्दू लोग, धर्म्म के सम्बन्ध में, बुरी दृष्टि से देखते हैं उन्हीं के प्राचीनतम ऋषियों और विद्वान् पंडितों ने हिन्दू-शब्द के आदिम रूप को अपने धर्मग्रंथ में स्थान दिया है। वह आदिम रूप हन्द् शब्द है। यहूदियों की धर्म-पुस्तक ओल्ड टेस्टामेंट (बाइबल के पुराने भाग) में भी हन्द् शब्द पाया जाता है। अब देखना है कि इन दोनों ग्रन्थों में से अधिक पुराना ग्रन्थ कौन है।

क्रिश्चियन लोगों का कथन है कि बाइबिल का पुराना भाग क्राइस्ट से पांच हजार वर्ष पहले का है। इसमें कोई सन्देह नहीं। इसे वे पूरे तौर पर सच समझते हैं। पारसी कहते हैं-"Our