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प्राचीन भारत में जहाज़
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उदीच्याश्च प्रतीच्याश्च दाक्षिणात्याश्च केरलाः
कोट्याः, परान्ताः सामुद्रा रत्नान्युपहरन्तु ते॥
(अयोध्याकाण्ड, सर्ग ६३, श्लोक ५४)
समुद्रमवगाढाँश्च पर्वतान् पत्तनानि च।
(किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ४०, श्लोक २५)
भूमिश्च कोषकारणां भूमिश्च रजताकराम्।
(किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ४०, श्लोक २३)
ततः समुद्रद्वीपांश्च सुभीमान् द्रष्टुमर्हत।
पतान् म्लेच्छान पुलिन्दांश्च xxx॥
काम्बोजयवनांश्चैव शकानां पत्तनानि च।
अन्विध्य बरदाँश्चैव हिमवन्तं विचिन्वय॥
(किष्किन्धा-काण्ड, सर्ग ४३)

इन श्लोकों से स्पष्ट मालूम होता है कि रामायण-युग में शक आदि विदेशी जातियां व्यापार-वाणिज्य से बहुत प्रेम रखती थीं। उनका यह कार्य विशेष करके भारतवासियों ही के साथ होता था। वाल्मीकीय रामायण से यवद्वीप, सुमात्रा- द्वीप और चीन में हिन्दुओं के आने-जाने आदि का भी पता लगता है।

महाभारत के निम्नोद्धृत श्लोक से मालूम होता है कि पाण्डवों के सब से छोटे भाई सहदेव ने समुद्र के मध्यवर्ती कितने ही द्वीपो में जाकर वहां के अधिवासी म्लेच्छों को हराया था-

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