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अतीत-स्मृति
 

आददीताथ षड्भागं द्रु-मांस-मधु-सर्पिषाम्
गन्धौषधिरसानाञ्च पुष्पमूलफलस्य च॥
यत्र शाकतृणानाञ्च वैदलस्य च चर्मणाम्।
मृण्मयानाञ्च भाण्डानां सर्वस्याश्ममयस्य च॥
(सप्तम अध्याय-१३१, १३२)
कारुकान् शिल्पिनश्चैव शुद्राश्चात्मोपजीविनः।
एकैकं कारयेत् कर्म्म मासि मासि महीपतिः॥
(सप्तम् अध्याय-१३८)

रामायण से हमें पता लगता है कि दक्षिण के अधिकांश प्रदेश उस समय बड़े बड़े जालों से परिपूर्ण थे। रामायण में दक्षिण-देश की नदियो और पर्वतों आदि का बहुत वर्णन है। उससे मालूम होता है कि रामायण की जिस समय रचना हुई थी उस समय हिन्दुओं का आवागमन दक्षिण में खूब था। साथ हो उस समय समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों के साथ उनका वाणिज्य-व्यापार भी था। किष्किन्धा-काण्ड के चालीसवें सर्ग में यवद्वीप (जावा) का वर्णन है-

यत्नवन्तो यवद्वीपं सप्तराज्योपशोभितम्।
सुवर्णसम्यकं द्वीपं सुवर्ण कायमण्डितम्॥

रामायण के कुछ श्लोकों में समुद्र-यात्रा का विशेष वर्णन है। देखिए-