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अतीत-स्मृति
 


आता है। विद्वान लोग इस शब्द का अर्थ 'पहला' ही करते हैं। प्राचीन पारसी भाषा में पर, परवा, परवीं, परवीज़, पौर्य्य, पौर्येनी आदि कितने ही शब्द हैं जिनसे ताराओं का अर्थ लिया जाता है, परन्तु उन्ही ताराओं का जो सूर्य-मण्डल मे 'प्रथम' अर्थात् श्रेष्ठ समझे जाते हैं। संस्कृत के 'पूर्व' शब्द से इन शब्दों का घनिष्ठ सम्बन्ध मालूम पड़ता है।

मजूमदार महाशय स्वयं स्वीकार करते हैं कि 'दक्षिण' का ज़न्द रूप दार्शन है। वे यह भी मानते हैं कि लैटिन और ग्रीक भाषाओं में भी उसके सदृश और उसीके आधुनिक अर्थों के जैसे अर्थ रखने वाले शब्द मौजूद हैं। यदि ऐसा है तो, क्या यह संभव नहीं कि लैटिन और ग्रीक भाषाओं के इन शब्दों के अर्थ, प्राचीन काल में, वही रहे होंगे जो इस समय संस्कृत में थे? रोमन, ग्रीक, ड्रड आदि योरोप की प्राचीन जातियों मे प्रदक्षिणा की प्रथा जोरों पर थी। प्राचीन गैलिक भाषा में इस प्रथा को "डीजिल" और रोमन भाषा में 'डेक्सट्रेटिस' कहते थे। 'डीजिल' शब्द की धातु गीज़ के अर्थ हैं-'दक्षिण' तथा दक्षिण दिशा। प्राचीन आयरिश शब्द 'डेस', वेल्श शब्द 'डेहौ', लैटिन शब्द 'डेक्स्ट्रा', ग्रीक शब्द 'डेक्सियस' आदि भी इसी अर्थ के बोधक हैं। इन मे संस्कृत शब्द 'दक्षिण' का बहुत कुछ सादृश्य है और इनके अर्थ भी इसके आधुनिक अर्थ से मिलते जुलते हैं।

मजूमदार महाशय का यह कहना भी ठीक नहीं कि प्राचीन