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आर्य्यों का आदिम-स्थान
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जिसे हम वर्ष कहते हैं वह देवताओं का एक दिन है, (३, ९, २२, १) पारसियों की अवेस्ता मे भी ठीक एक ऐसी ही उक्ति है।

उत्तरी ध्रुव मे चैत्र से भादों तक अविराम दिन रहता है, और आश्विन से फाल्गुन तक अविराम रात रहती है। यह ९० अक्षांश की बात है। वहां रात के आरम्भ और अन्त में, ५२ दिन तक, बराबर उषःकाल रहता है। ८९ अक्षांश से नीचे के भू-भाग में क्रम क्रम से इस परिणाम में अन्तर पड़ता जाता है। यहां पर यह शंका हो सकती है कि जहाँ ६ महीने रात रहती है वहां मनुष्य कैसे रह सकता है। इसका समाधान बहुत सरल है। पहले तो ऐसे स्थानो में, चार महीने के लगभग, तड़का (उषःकाल) रहता है। गरमियों में पांच बजे प्रातःकाल और सात बजे सायंकाल जितना उजियाला रहता है उतना ही वहां रहता है। अतएव कोई सांसारिक काम, उस समय, एक नहीं सकता। फिर जो दो महीने रात रहती है उसमें मेरु-ज्योति का बहुत ही मनोमोहिक प्रकाश होता है। मेरु प्रदेश में भ्रमण करने वाले डाक्टर नानूसेन ने मेरुज्योति (Aurora Borealis) का बड़ा ही विलक्षण वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि "उसकी शोभा और आभा का वर्णन शब्दों द्वारा किया जाना सर्वथा असम्भव है। वह अन्तर्हित प्रकाशपुञ्ज है। बिना देखे उसकी सुन्दरता का अनुमान मनुष्य को स्वप्न में भी नहीं हो सकता। वह आकाश में नृत्य सा किया करती है। वह कभी कभी तेजोमय सूर्याकृति धारण करके सिर के ऊपर भांति भांति के खेल से करती है।" अतएव, रात