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अतीत-स्मृति
 


प्राचीनतम काल के साहित्य में भी अनेक प्रकार के सिक्कों के नाम आते है। यहां आबादी और व्यापार बढ़ने के साथ साथ सिक्कों और गहनों आदि के लिए सोने की मांग भी अवश्य ही बढ़ गई होगी। सम्भव है, यहां काफी सोना न मिलने से भारतवासी मिश्र की खानों से सोना लाकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते रहे हों।

इस बात के सबूत मिलते हैं कि मिश्र में पहले पहल लंकानिवासी समुद्र के रास्ते से अरब, अबीसीनिया या एथिओपिया गये। इनके बाद मलाबार, कच्छ, उड़ीसा और बंगाल की खाड़ी के आस पास के रहने वाले मिश्र पहुँचे। उत्तरी भारत के निवासी वेक्ट्रिया, सीरिया और एशिया माइनर होते हुए, उन लोगों के बहुत पीछे, अर्थात् ईसा के पहले तेरहवी शताब्दी में वहाँ पहुंचे। यद्यपि मिश्रवालों ने अपने इतिहास में भारतवासियों का जिक्र नहीं किया, यद्यपि उन्होने अपने इतिहास में अपने धर्मशास्त्र और अपनो वंशपरम्परा को स्वतंत्र रूप देने की चेष्टा की है, तथापि उनकी प्रत्येक बात से हिन्दुस्तानीपन टपकता है। पूर्वोक्त मार साहब ने बड़ी ही दृढ़ और अकाट्य युक्तियों से यह साबित कर दिया है कि हिन्दू लोग मिश्र में जाकर बसे थे और उन्हीं से मिश्रवालों ने सभ्यता सीखी।

मिश्रवाले अपने पहले राजा और धर्म-शास्त्र प्रणेता का नाम मीनस बतलाते हैं, जो हमारे मनु के सिवा और कोई नहीं। केवल मिश्रवालों ही ने नहीं, किन्तु उस समय की अन्य जातियों के