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विक्रम-संवत्
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राजा का नाम नहीं है। तथापि वह संवत् किसी राजा का चलाया हुआ ज़रूर है। यह नहीं कह जा सकता कि इस ताम्र-पत्र के खोदने या खुदवाने वालों को इस राजा का नाम न मालूम था। जैसे शक-संवत् का प्रयोग करने वाले उसके प्रवर्तक का नाम सदा नहीं देते वैसे ही, जान पड़ता है, इस संवत् के प्रवर्तक का नाम उन पुराने शिलालेखो और ताम्रपत्रो मे नही दिया गया, केवल मालव-संवत् या मालवेश-संवत् दिया गया है। पर इससे यह कहां सिद्ध होता है कि इसका प्रवर्तक काई राजा या पुरुष-विशेष न था। मालव-निवासियों के एक देश या स्थान छोड़ कर अन्य देश या स्थान में जा बसने की किसी घटना का कुछ पता नहीं। न उनके किसी प्रसिद्ध नगर या इमारत बनाने की किसी घटना का कहीं कोई उल्लेख है। न उनके द्वारा की गई किसी और ही बड़ी बात का कोई प्रमाण है। फिर मालव निवासियों के द्वारा इस संवत् का चलाया जाना क्यो माना जाय? 'मालवेश' का अर्थ क्या मालव-देश के राजा के सिवा और कुछ हो सकता है?

जरा देर के लिए मान लीजिये कि उसका आदिम नाम मालव संवत् ही था। अच्छा तो इस नाम को बदल कर कोई विक्रम संवत् करेगा क्यो? कोई भी समझदार आदमी दूसरे की चीज का उल्लेख अपने नाम से नहीं करता। किसी विजेता राजा के दूसरे के चलाये संवत् को अपना कहने मे क्या कुछ भी लज्जा न मालूम होगी? वह अपना एक नया संवत् सहज ही मे चला सकता है। किसी के संवत् का नाम बदल कर उसे अपने नाम से