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११६ :: अदल-बदल
 

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दुर्भाग्य एक अपरिसीम और अर्पाप्त वस्तु है। वह मनुष्य के जीवन का बहीखाता है। उस बाहीखाते में मनुष्य के जीवन के पुण्य ही नहीं, चरित्र-दौर्बल्य और कुत्सा का एवं मानसिक कलुष का लेखा-जोखा आना-पाई तक हिसाब करके ठीक-ठीक लिखा जाता रहता है। लोग कहते तो यह हैं कि यह दुर्भाग्य मनुष्य पर लादा गया बोझ है। परन्तु सच पूछा जाए तो यह मनुष्य की पाप की कमाई की पूंजी ही है। पाप के विषय में भी एक बात कहूं, लोग पाप की गठरी को बहुत भारी बताते हैं। मेरी राय इससे बिल्कुल ही दूसरी है। वह न तो उतनी भारी ही है जिसे लादने को कुली या छकड़ा गाड़ी की आवश्यकता है, न वह---जैसा कि लोग कहते हैं---ऐसी ही है कि जो केवल मरने के बाद परलोक में ही खोली जाएगी, मरने तक उसे मनुष्य लादे फिरेगा। वह तो शरीर में हाथ-पैरों के बोझ के समान है जिसे आदमी बड़े चाव से लादे फिरता है, और कभी उकताता नहीं है। वह चाहे जब उसकी एक चुटकी का स्वाद ले लेता है और उसके तीखे और कड़वे स्वाद पर उसी तरह लटू है, जैसे एक अन्य नशे-पानी की चीजों के कुस्वाद पर। नशे-पानी की चीजों से पाप में केवल इतना ही अन्तर है कि नशे-पानी की चीजें महंगे मोल बिकती हैं, परन्तु पाप मनुष्य के जीवन के चारों ओर बिखरा पड़ा है और उसे जितना वह चाहे बटोरकर अपने कन्धों पर लाद लेने से रोकने के लिए कोई मनाही नहीं है। उस पर कोई चौकीदार-सिपाही पहरा नहीं दे रहा है। वह हवा-पानी से भी अधिक सस्ता और सुलभ है। इसीसे मानव स्वच्छ भाव से युग-युग के उसके सेवन का अभ्यासी रहा है। यह भी सत्य है कि पत्नी का पाप पति का दुर्भाग्य हो जाता है, और पति का पाप पत्नी का दुर्भाग्य होता है। इन्द्रियों की