सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अदल -बदल::१२३
 

माया ने हाथ बढ़ाकर पति के चरण छुए। उसने रोते-रोते कहा- 'मुझे साड़ी नहीं, गहना नहीं, सुख नहीं, सिर्फ तुम्हारी शुभ दृष्टि चाहिए। नारी-जीवन का तथ्य मैं समझ गई हूं, किन्तु अपना नारीत्व खोकर। वह घर की सम्राज्ञी है, और उसे खूब सावधानी से अपने घर को चारों ओर से बन्द करके अपने साम्राज्य का स्वच्छन्द उपभोग करना चाहिए, जिससे बाहर की वायु उसमें प्रविष्ट न हो, फिर वह साम्राज्य चाहे भी जैसा-लघु, तुच्छ, विपन्न, असहाय क्यों न हो।'

मास्टर साहब ने कहा-प्रभा की मां, तुम तो मुझसे भी ज्यादा पण्डिता हो गईं। कैसी-कैसी बातें सीख लीं तुमने प्रभा की मां!'-वे ही-ही करके हंसने लगे।

उनकी आंखों में अमल-धवल उज्ज्वल अश्रु-बिन्दु झलक रहे थे ।