'रजनी, विश्वास करो, तुम कहो तो मैं अभी यहां से कूदकर अपनी जान दे दूं।'
'इससे क्या फायदा होगा मिस्टर दिलीप, उल्टे पुलिस मुझे हत्या करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लेगी। परन्तु मुझे तो यह ताज्जुब है कि तुम दो ही दिन में मुझे इतना प्रेम कैसे करने लगे।'
'मैं तो पहली नजर ही में तुम पर मर मिटा था।'
'तुमने क्या किसी और स्त्री को भी प्यार किया है?'
'नहीं नहीं, कभी नहीं, इस जीवन में सिर्फ तुम्हें।'
'क्यों, क्या तुम्हें कोई स्त्री मिली नहीं?'
'तुम सी एक भी नहीं, रज्जी।'
'यह तो और भी आश्चर्य की बात है। कलकत्ते में, बनारस में, इलाहाबाद में, लखनऊ में, पटने में, कहीं भी मुझ-सी कोई स्त्री है ही नहीं?"
'नहीं नहीं, रज्जी, तुम स्त्री-रत्न हो।'
'जापान में, चीन में, इंग्लैंड में, जर्मनी में, अमेरिका में, अरे! तुम तो सब देश की स्त्रियों से बाकिफ होगे?
'रज्जी, तुम सबमें अद्वितीय हो।'
'मुझे इसमें बहुत शक है मिस्टर दिलीप, एक काम करो। अभी यह प्रेम मुल्तबी रहे। तुम एक बार हिन्दुस्तान के सब शहरों में घूम-फिरकर ज़रा अच्छी तरह देख-भाल आओ। मेरा तो ख्याल है तुम्हें मुझसे अच्छी कई लड़कियां मिल जाएंगी।'
दिलीप महाशय ने ज़रा जोश में आकर कहा--'रज्जी, तुम्हारे सामने दुनिया की स्त्री मिट्टी है।'
'मगर यह तुम्हारा अपना वाक्य नहीं मालूम देता। यह तो पेटेण्ट वाक्य है। देखो, मैं ही तुम्हें दो-तीन लड़कियों के पते बताती हूं। एक तो इलाहाबाद के कस्थवेट में मेरी सहेली है। दूसरी•••।'