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१४६ :: अदल-बदल
 

तांगे के पैसे निकालो।'

इसी बीच दुलरिया ने जल से भरा लोटा और आगे बढ़ाकर कहा-'भैया, सवा रुपया इसमें भी तो डालो।'

क्षणभर के लिए दिलीप सकपका गए। उसने अपनी अंगूठी उतार कर जलपात्र में डाल दी। दुलरिया ने मृदु-मन्द मुस्कान होंठों पर बखेरकर कहा--'हमको ले चलो भैया, दुलहिन की सेवा करेंगी।'

दिलीप कुछ जवाब न देकर झपटकर भागा और राजेन्द्र का हाथ पकड़कर तांगे में जा बैठा।

दुलारी ने एक बार हंसती आंखों से रजनी को देखा, वह रो रही थी।