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पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/१४५

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पाप

दो स्त्रियां परस्पर बातें कर रही थीं। संध्या हो रही थी। अन्धकार कमरे में बढ़ रहा था, पर वे अपनी बातचीत में इतनी लीन थीं कि उन्होंने इसकी तनिक भी परवाह न की। एक की अवस्था छबीस वर्ष के लगभग थी और दूसरी की पन्द्रह वर्ष की। दोनों सम्भ्रान्त कुल की शिक्षित महिलाएं थीं। कमरा खूब सजा हुआ था, और ये दोनों सुन्दरियां एक तख्त पर, मसनद के सहारे अस्त-व्यस्त पड़ी अपनी बातों में दीन-दुनिया भुलाए बैठी थीं। बड़ी स्त्री अत्यन्त सुन्दर थी। उसकी खिली हुई आंखें और उभरे हुए होंठ प्रबल लालसा के द्योतक थे। खूब गहरे और खूब काले बालों से उत्कट वासना प्रकट हो रही थी। वह खूब मजबूत, मांसल और मुस्तैद औरत थी। दूसरी स्त्री अत्यन्त नाजुक बदन, अविकसित कली के समान अस्फुट, पीली, दुबली, पतली, किन्तु सुन्दरी थी। उसकी नासिका का मध्य भाग कुछ उभरा हुआ था, और आंखें कटाक्षयुक्त थीं। छिपी हुई वासना और चांचल्य उसमें फूटा पड़ता था। अभी कुछ मास में उसका विवाह होने वाला था। पति-सहवास की स्मृति की एकमात्र झलक ने उसे असंयत कर दिया था। अब स्त्री के लिए पति क्या वस्तु है, पति नहीं---पुरुष क्या वस्तु है? यही उसके विचार और कल्पना का विषय था। इस समय दोनों स्त्रियां बिल्कुल सटकर बैठी इसी विषय का चिन्तन कर रही थीं।

छोटी स्त्री ने कहा---'अरे मैं तुम्हें चाची कहूं, या बहनजी, या क्या? कुछ समझ में नहीं आता।'