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१५०::अदल-बदल
 


वे तुम्हें इतना प्यार करते हैं।

'तू प्यार को क्या जाने पगली, अभी तो अल्हड़ बछुड़ी है, ससुराल का रस तूने देखा नहीं है।'

'अच्छा, सच कहो, ये तुम्हें कितना प्यार करते हैं?'

'जितना जगत् में किसी ने किसी को नहीं किया।'

'और तुम?' तुम भी प्यार करती हो या नहीं?'

'मैं क्यों करने लगी।' युवती ने दो धप्प बालिका को लगा दी। इसके बाद कहा--'अच्छा कह, कैसे हैं?'

'बहुत अच्छे हैं।'

'तुझे पसन्द आए?'

'हटो, कैसी बातें करती हो।'

'कह-कह, नहीं घूंसे मार-मारकर ढेर कर दूंगी।'

बालिका ने स्वीकार-सूचक सिर हिलाकर मुंह सखी के आंचल में छिपा लिया। युवती गर्व से फूल गई। उसने दो-चार घूंसे जमाकर कहा--'कहीं, आगे-पीछे बातें न करने लगना।'

'वाह, मैं बातें कैसे करूंगी? हां, सुनो, उन्हें नाश्ता तो करा दो। बेचारे हारे-थके कचहरी से आए हैं!'

गहिणी ने तीन तश्तरियों में नाश्ता सजाकर कहा--'लो, पहले उन्हें तुम्हीं दे आओ।'

बालिका ने कान पर हाथ धरकर कहा--'राम राम, मर जाऊं तब भी उनके सामने नहीं जाऊंगी।'

'तब साली क्या खाक बनी?'

'ऐसी साली नहीं बनती।'

'बस, इतने ही वह अच्छे लगे?'

'पर उनके सामने कैसे जा सकती हूं?'

'क्या वह तुझे हलवा समझकर गड़प कर जाएंगे?'

'नहीं, मैं नहीं जाऊंगी।'