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अदल-बदल :: २५
 

मास्टर साहब चुपचाप खाकर स्कूल को चले गए।

माया ने कहा---'बिना कहे तो रहा नहीं जाता---अब तेली, तम्बोली, दूधवाला आकर मेरी जान खाएंगे तो? तुम्हें तो अपनी इज्जत का ख्याल ही नहीं, पर मुझसे तो इन नीचों के तकाजे नहीं सहे जाते!'

मास्टरजी ने धीमे स्वर में नीची नजर करके कहा---'करूंगा प्रबन्ध, जाता हूं।'

आजाद महिला-संघ की अध्यक्षा श्रीमती मालतीदेवी चालीस साल की विधवा थीं। अपने पति महाशय के साथ उन्होंने तीन बार सारे योरोप में भ्रमण किया था। वह योरोप की तीन-चार भाषाएं अच्छी तरह बोल सकती थीं। उनका स्वास्थ्य और शरीर का गठन बहुत अच्छा था। चालीस की दहलीज पर आने पर भी वे काफी आकर्षक थीं। मिलनसार भी वे काफी थीं। पति की बहुत बड़ी सम्पत्ति की वे स्वतन्त्र मालकिन थीं। विदेश में स्त्रियों की स्वाधीनता को देखकर उन्होंने भारत की सारी स्त्रियों को स्वाधीन करने का बीड़ा उठाया था। और भारत में आते ही आजाद महिला-संघ का सूत्रपात आरम्भ कर दिया था। इस आन्दोलन से उनकी जान-पहचान बहुत बड़े-बड़े लोगों से तथा परिवारों में हो गई थी। उनकी बातें और बात करने का ढंग बड़ा मनोहर और आकर्षक था। दांतों की बतीसी यद्यपि नकली थी, पर जब वे अपनी मादक हंसी हंसती थीं तब आदमी का दिल बेबस हो ही जाता था। भिन्न-भिन्न प्रकृति और स्थिति के