पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/३९

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अदल-बदल :: ४१
 

'यह वह सत्य है, जिसमें नर और नारी के दो रूप होने के भेद छिपे हैं। नर नर है, नारी नारी है।'

'परन्तु नर-नारी दोनों समान हैं।'

'समान नहीं हैं, दोनों मिलकर एक इकाई हैं। न पुरुष अकेला एक है, न स्त्री अकेली एक है। दोनों आधे हैं, दोनों मिलकर एक हैं।'

'ऐसा नहीं है।'

'ऐसा ही है। स्त्री पुरुष की भूखी है, पुरुष स्त्री का भूखा है, दोनों में दोनों की कमी है। दोनों एक-दूसरे को आत्मदान देकर जब एक होते हैं, तब वे पूर्ण इकाई बनते हैं।'

'स्त्रियों को भी अधिकार है।'

'जब स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर एक इकाई हुए---तो पृथक अधिकार कहां रहे?'

'वे रहेंगे, हम उन्हें प्राप्त करेंगी।'

'अथवा जो प्राप्त हैं उन्हें भी खोएंगी?'

बातचीत हो रही थी और मायादेवी का श्रृंगार भी हो रहा था। अब कंघी-चोटी से लैस होकर उन्होंने कहा---'अच्छा, मैं जाती हूं।'

'यह ठीक नहीं है प्रभा की मां।'

'वापस आने पर मैं तुम्हारे उपदेश सुनूंगी, परन्तु अबतो समय बिलकुल नहीं है।'

मायादेवी तेजी से चल दी। उन्होंने उलटकर पुत्री और पति की ओर देखा भी नहीं।