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अदल-बदल :: ४३
 

'तुम्हारे क्रिया-कर्म के लिए। कहता हूं, देर हो रही है, और तुम अपनी हुज्जत ही नहीं छोड़तीं---अजीब जाहिल हो।'

'जाहिल ही सही, मगर तुम्हारी पत्नी हूं। मुझे भी कुछ हक है।'

'तो यह हक का दावा अदालत में दाखिल करना बाबा, मेरा वक्त बर्बाद न करो, रुपये निकाल दो।'

'मैं पूछती हूं, किसलिए?'

'तुम पूछने वाली कौन हो? मुझे जरूरत है।'

'मैं जानना चाहती हूं---क्या जरूरत है।'

'हद कर दी। अरी बेवकूफ औरत, मैं रुपये मांग रहा हूं, सुना कि नहीं।'

'और मैं यह जानना चाहती हूं कि रोज-रोज रात-रातभर घर से बाहर रहने, शराबखोरी करने और इतना रुपया फूंकने का मतलब क्या है?

'तबीयत कोफ्त कर दी। मैं कहता हूं, रुपया निकाल दो।'

'मैं कहती हूं, रुपया नहीं मिलेगा।'

'क्यों नहीं मिलेगा? क्या रुपया तुम्हारे बाप का है?'

'बाप के रुपये पर हिन्दू स्त्री का अधिकार नहीं होता। रुपया मेरे पति का है। उसपर मेरा पूरा अधिकार है।'

'अरी डायन, यह अधिकार तू मेरे मरने के बाद दिखाना, अभी तो मैं जिन्दा हूं और अपने रुपये का तथा हर एक चीज का मालिक मैं ही हूं।'

'मुझे तुमसे बहस नहीं करनी है। लेकिन मैं तुम्हें आज नहीं जाने दूंगी।'

'तू नहीं जाने देगी? और रुपया भी नहीं देगी?'

'नहीं दूंगी।'

'तेरी इतनी हिम्मत! मैं तुझे काटकर रख दूंगा।'