पृष्ठ:अदल-बदल.djvu/४२

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४४::अदल-बदल
 

'ऐसा कर सकते हो।

डाक्टर तेजी से आगे बढ़कर एकदम विमलादेवी के निकट आ गए, और दांत किटकिटाकर कहा-'सेफ की चाभी दे !'

'नहीं दूंगी।'

'अरी चुडैल, बता चाभी कहां है ?'

'नहीं बताऊंगी, नहीं दूंगी।'

'क्या तू आज ही मरना चाहती है ?'

'जब मरने का वक्त आएगा, खुशी से मरूंगी?'

'तो मर फिर।'

डाक्टर ने जोर से उसका गला दबाकर उसे ऊपर उठा लिया और फिर जमीन पर पटक दिया। इसके बाद वे सेफ की चाभी घर भर में ढूंढ़ने को आलमारी और मेजों की ड्रावरों से सामान निकाल-निकालकर इधर-उधर छितराने लगे। विमला-देवी का दीवार से टकराकर सिर फट गया और वे खून में नहा गईं। पांच वर्ष की सोती हुई बच्ची जागकर चीख मार-मारकर रोने लगी। डाक्टर को आखिर चाभी मिल गई। वे सेफ की ओर लपके। पर विमलादेवी ने दौड़कर दोनों हाथों से सेफ पकड़ लिया। वह सेफ से सीना भिड़ाकर खड़ी हो गईं। डाक्टर ने तड़ा-तड़ सेफ की बड़ी चाभी की निर्दय मार विमलादेवी की उंगलियों पर मारनी शुरू की। विमलादेवी के हाथ लोहूलुहान हो गए। वे बेहोश होने लगीं । उन्हें एक ओर ढकेलकर डाक्टर कृष्णगोपाल ने सेफ का ताला खोल डाला और नोटों का बण्डल जेब में डाल तेजी से घर के बाहर हो गए। बेहोश और खून में लतपत पत्नी की ओर उन्होंने नजर नहीं डाली, भय और आतंक से माता की छाती पर सिसकती हुई पुत्री पर भी नहीं।