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४६ :: अदल-बदल
 


जाएगी।'

'लाहौल बिला कूबत, ऐसी मनहूस बात जबान पर न लाना मायादेवी, कहे देता हूं। मरें तुम्हारे दुश्मन। और इस कोडबिल ने भी तबीयत कोफ्त कर दी। लो यारो, एक-एक पैग चढ़ाओ, जिससे तबीयत ज़रा भुरभुरी हो। उन्होंने जोर से पुकारा 'बॉय।'

वैरा आ हाजिर हुआ। डाक्टर ने जेब से सौ का नोट निकाल कर कहा--'झटपट दो बोतल ह्विस्की, बर्फ, सोडा।'

'लेकिन हुजूर, आज तो ड्राई डे है!'

'अबे ड्राई डे के बच्चे, ड्राई डे है तो मैं क्या करूं, क्लब से ला।' उन्होंने एक सौ रुपये का नोट उस पर फेंक दिया। वैरा झुककर सलाम करता हुआ चला गया।

मायादेवी के साथ जो युवक था वह किसी बीमा कंपनी का एजेण्ट था। निहायत नफासत से कपड़े पहने था और पूरा हिन्दुस्तानी साहब लग रहा था। डाक्टर कृष्णगोपाल की गंजी खोपड़ी, अधपकी मूछे और कद्दू के समान कोट के बाहर उफनते हुए पेट को वह हिकारत की नजर से देख रहा था।

इस मण्डली में चौथे महाशय एक सेठजी थे। वे सिल्क का कुर्ता तथा महीन पाढ़ की धोती पर काला पम्पशू डाटे हुए थे। वे चुपचाप मुस्कराकर शराब पी रहे थे। रंग उनका गोरा, आंखें बड़ी-बड़ी और माथा उज्ज्वल था। उंगलियों में हीरे की अंगूठी थी। डाक्टर को ये भी तिरस्कार की नजर से देख रहे थे। बात यह थी कि ये तीनों जेंटलमैन मायादेवी के ग्राहक थे। भीतर से तीनों एक-दूसरे से द्वेष रखते थे। ऊपर से चिकनी-चुपड़ी बातें करते थे। मायादेवी सबको सुलगातीं। सबको खिलौना बनातीं। उनके साथ खेल करतीं, खिजाती थीं और उसीमें उन्हें मजा आता था।

उन्होंने ज़रा नाक-भौं सिकोड़कर कहा--'आखिर यह