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अदल-बदल::४७
 

कोडबिल है क्या बला?'

सेठजी का नाम गोपालजी था। उन्होंने हुमसकर कहा-'मजेदार चीज है । मायादेवी, ठीक मौसमी कानून है ।' 'मौसमी कैसा?' मायादेवी ने गोपाल सेठ पर कटाक्षपात करते हुए कहा।

'इतना भी नहीं समझतीं? मायादेवी जब उभर आई हैं तभी कोडबिल कानून भी उनकी मदद को आ खड़ा हुआ है। उसका मंशा यह है कि मायादेवी न किसीकी जरखरीद बांदी हैं,न किसीकी ताबेदार, वे स्वतन्त्र महिला हैं । अरे साहब, स्वतन्त्र भारत की स्वतन्त्र महिला, वे अपनी कृपादृष्टि से चाहे जिसे निहाल कर दें, चाहे जिसे बर्बाद कर दें।'

डाक्टर ने गिलास खाली करके मेज पर रखते हुए घुड़ककर सेठजी से कहा-'बड़े बदतमीज हो, महिलाओं से बात करने का ज़रा भी सलीका नहीं है तुम्हें, कोडबिल की मंशा तो ज़रा भी नहीं समझते?

'तो हजूरेवाला ही समझा दें। गोपाल सेठ ने बनते हुए कहा।

'कोडबिल का मंशा यह है कि आजाद भारत की नारियां आजादी के वातावरण में आजादी की सांस लें। हजारों साल से पुरुष उन पर जो अपनी मिल्कियत जताते आते हैं, वह खत्म हो जाए। पुरुष के समान ही उनके अधिकार हों, पुरुष की भांति ही वे रहें, समाज में उनका दर्जा पुरुष ही के समान हो।'

'वाह भाई वाह ! खूब रहा!' सेठने जोर से हंसकर कहा-'तब तो वे बच्चे पैदा ही न करेंगी, उनके दाढ़ी-मूछे भी निकल आएंगी। पुरुष की भांति जब वे सब काम करेंगी तो उनका स्त्री-जाति में जन्म लेना ही व्यर्थ हो गया। तब कहो-हम-तुम किसके सहारे जिएंगे, यह बरसाती हवा और पैग का गुलाबी सुरूर सब हवा हो जाएगा!'