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५० :: अदल-बदल
 

संभव नहीं है कि हम उनकी रजामन्दी के विरुद्ध कोई काम भी कर सकें।'

'लेकिन यह भी तो कहिए कि घर में हमारी इज्जत क्या है, हमारा अधिकार क्या है?'

'क्या इज्जत नहीं है? छ: साल तक मुर्दो से लड़ाई करते हैं तब डाक्टर की डिग्री मिलती है। परन्तु स्त्री उससे ब्याह करते ही डाक्टरनी बन जाती है। ये सेठजी बैठे हैं पूछिए--कितनों का गला काटकर सेठ बने हैं; और इनकी बीबी तो इनसे ब्याह होते ही सेठानी बन गई। तहसीलदार की बीबी तहसीलदारिन, थानेदार की थानेदारिन स्वतः बन जाती है कि नहीं? फिर अधिकार की क्या बात? घर में तो आपका ही राज्य है मायादेवी, हमारी तो वहां थानेदारी चलती नहीं।'

'परन्तु आप यह भी जानते हैं कि घर के भीतर स्त्रियों ने कितने आंसू बहाए हैं।'

'सो हो सकता है, आप ही कहां जानती हैं कि घर के बाहर मर्दों ने कितना खून बहाया है! आंसू से तो खून ज्यादा कीमती है मायादेवी, यह तो अपनी-अपनी मर्यादा है। अपना-अपना कर्तव्य है। वक्त पर हंसना भी पड़ता है, रोना भी पड़ता है, जीना भी पड़ता है, और मरना भी पड़ता है। समाज नाम भी तो इसी मर्यादा का है?

सेठ गोपालजी खुश होकर बोले--'बहस मजेदार हो रही है। कहिए मायादेवी, अब आप हरवंशलाल बाबू की क्या काट करती हैं।'

डाक्टर ने जोश में आकर कहा--'हरवंश बाबू की बात की काट करूंगा मैं। आप यदि स्त्रियों को बच्चे पैदा करने की मशीन और अपनी वासना-पूर्ति का साधन नहीं बनाना चाहते तो जनाब आपको उन्हें आजाद करना पड़ेगा, उन्हें समाज में समानता के