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४९::अदल-बदल
 

जूती बनी रहें। आप जो चाहें हमारे साथ जुल्म करें, और हमारी छाती पर मूंग दले और हम कुछ न कहें। चुपचाप बर्दाश्त करें। हजरत, अब यह नहीं हो सकता। हम लोगों ने गुलामी के इस कफन को फाड़ फेंकने तथा आजादी की हवा में सांस लेने का पक्का इरादा कर लिया है। दुनिया की कोई ताकत अब हमें इस इरादे से रोक नहीं सकती।'

'श्रीमती मायादेवी!' युवक ने हंसकर मादक दृष्टि से माया- देवी की ओर देखते हुए कहा-'हम मर्दो का इरादा स्त्रियों के किसी इरादे में दखल देने का नहीं है। पर सच कहने की आप यदि इजाजत दें तो मैं एक ही बात कहूंगा कि आधुनिक काल का प्रत्येक शिक्षित पुरुष जब स्त्रियों के विषय में सोचता है तो वह उनकी उन्नति, आजादी तथा भलाई की ही बात सोचता है। परन्तु आधुनिक काल की प्रत्येक शिक्षित नारी तो पुरुषों के विषय में केवल एक ही बात सोचती है-कि कैसे उन पुरुषों को कुचल दिया जाए, उन्हें पराजित कर दिया जाए। वास्तव में यह ही खतरनाक बात है।'

'खतरनाक क्यों है ?' मायादेवी ने कहा।

'इसलिए ऐसा करने से पुरुषों के हृदय में से स्त्रियों के प्रति प्रेम के जो अटूट सम्बन्ध हैं, वे टूट जाएंगे और उनमें एक परायेपन की भावना उत्पन्न हो जाएगी, तथा स्त्रियां पुरुषों के संरक्षण से बाहर निकलकर कठिनाइयों में पड़ जाएंगी।'

'तब आप चाहते क्या हैं ? यही कि हम लोग सदैव आपकी गुलाम बनी रहें?

'आपको गुलाम बनाता कौन है मायादेवी, हम पुरुष लोग तो खुद ही आप लोगों के गुलाम हैं । हमारी नकेल तो आप ही के हाथों में हैं। धन-दौलत जो कमाकर लाते हैं, घर में हम स्त्रियों को सौंप देते हैं। उन्हें हमने घर-बार की मालकिन बना दिया है।