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६४ :: अदल-बदल
 

'तो आपके बिचार से किसीको प्रेम करना गुनाह हो गया।'

'यह तो मैं नहीं जानती, परन्तु मैं पुरुषों के प्रेम पर कोई भरोसा नहीं करती। उनका प्रेम वास्तव में स्त्रियों को फंसाने का जाल है।'

'यह महज आपका ख्याल ही ख्याल है। मायादेवी, पुरुष जब किसी स्त्री से प्रेम करता है तो अपनी हंसी खो डालता है, अभी आपका शायद किसी पुरुष से वास्ता नहीं पड़ा है।'

डाक्टर ने अजब लहजे में कुछ मुस्कराकर यह बात कही और सिगरेट निकालकर जलाई।

मायादेवी ने मुस्कराकर कहा--'यदि कोई पुरुष मिल गया तो जांच कर देखूगी।'

'अवश्य देखिए मायादेवी!'

मायादेवी ने हंसकर नमस्ते किया और चल दी। लेकिन डाक्टर ने बाधा देकर कहा--

'यह क्या? आप बिना जबाब दिए ही चल दीं। क्या मैं समझूं कि आप मैदान छोड़कर भाग रही हैं।'

'अच्छा, आप ऐसा समझने की भी जुर्रत कर सकते हैं?' मायादेवी ने ज़रा नखरे से मुस्कराकर कहा।

डाक्टर ने हंसकर कहा--'तो वादा कीजिए, आज रात को क्लब में अवश्य आने की कृपा करेंगी।'

'देखा जाएगा, तबीयत हुई तो आऊंगी।'

'देखिए, आप इस समय एक डाक्टर के सामने हैं। तबीयत में यदि कुछ गड़बड़ी हो तो अभी कह दीजिए, चुटकी बजाते ठीक कर दूंगा। आप मेरी सूई की करामात तो जानती ही हैं।'

'ये झांसे आप मास्टर साहब को दीजिए। मायादेवी पर उनका असर कुछ नहीं हो सकता।'

'तब तो हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के सिवाय और कोई